शिमला, 21 नवम्बर।
जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जाइका) की नर्सरी से हिमाचल में हरियाली की पाठशाला चल रही है। ताकी प्रदेश में गुणवत्तायुक्त पौधे तैयार कर उसे बेहतर तरीके से रोपा जा सके।
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जाइका के अंतर्गत प्रदेश में 66 रेंज और 6 सर्कल स्तर पर विकसित नर्सरियों में 55 से अधिक पेड़ों की प्रजातियों के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। चिलगोजा, छरमा, देवदार, बान, तोष समेत 55 पेड़ों की प्रजातियों वाले पौधे उक्त नर्सरियों में उपलब्ध हैं।
जाइका प्रोजेक्ट के माध्यम से इन नर्सरियों की क्षमता लगभग 80 लाख पौधे की बढ़ोतरी की गई है। इस साल लगभग 44 लाख पौधे तैयार किए गए हैं। कुल मिलाकर जाइका परियोजना के तहत चल रही नर्सरियां अपने आप में एक मिसाल बन चुकी है।
प्रदेश के हर जलवायु में रोपने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले पौधे तैयार किए जा रहे हैं। यह प्रयास हिमाचल में हरित आवरण को वर्ष 2030 तक 30 प्रतिशत बढ़ाने के लिए ही परियोजना का अहम योगदान है।
बताया गया कि जाइका प्रोजेक्ट के तहत चल रही नर्सरियों में अत्याधुनिक तकनीक द्वारा पौधे तैयार किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त उक्त सभी नर्सरियों में पौधों का पानी की बेहतर सुविधाएं,
केचुआ खाद, ग्रीन हाउस, इंटरलिंक चेन, फेंसिंग इत्यादी की सुविधा भी परियोजना से प्रदान की गई है ताकी गुणवत्तापूर्ण पौधे नर्सरियों में तैयार हो सके।
मिशन छरमा, चिलगोजा व चंदन के पौधे:
हिमाचल प्रदेश में पहली बार छरमा की नर्सरी तैयार करने में जाइका परियोजना का सबसे बड़ी भूमिका रही। जिला लाहौल-स्पीति में तैयार होने वाले छरमा एक औषधीय गुण वाला पौधा है। जिसकी नर्सरी वाइल्ड लाइफ स्पीति व लाहौल के सीसू में तैयार की गई है। इसके अलावा सीसू और शैगो नर्सरी में भी छरमा के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ आर्थिकी एवं औषधीय गुणों वाले चिलगोजा के पौधे जिला किन्नौर की छोल्टू नर्सरी में तैयार किए जा रहे हैं। वहीं फोरेस्ट डिविजन देहरा में चंदन के 10 हजार पौधे तैयार किए जा रहे हैं।
हिमाचल को ग्रीन स्टेट बनाने का संकल्प
हरित और सतत विकास के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए जाइका वाणिकी के मुख्य परियोजना निदेशक नागेश कुमार गुलेरिया ने कहा कि हिमाचल प्रदेश को हरित राज्य बनाना इस प्रोजेक्ट की मुख्य प्राथमिकता है। इस दिशा में परियोजना की टीम ने कई पहल की हैं। भविष्य में इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे। उन्होंने कहा कि जाइका द्वारा वित्तपोषित परियोजना हिमाचल को हरित राज्य बनाने की परिकल्पना को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। आगामी 2030 तक प्रदेश में 30 प्रतिशत हरित आवरण बढ़ाने का लक्ष्य रखा है।
नर्सरियों में इन प्रजातियों के पौधे हो रहे तैयार
तोष, खैर, खनूर, टौर, कचनार, देवदार, शीशम, अमलूक, आंवला, लोकाट, बिहुल, अखरोट, डरेक, मौरस, रई, चिलगोजा, चील, चुल्ली, पाज्जा, बेहमी, कनकचंपा, दरू, कैंथ, मोहरू, बान, रोबीनिया, रीठा, जामुन, रखाल, बेहरा, हरड, मरीनू इत्यादी के अलावा जड़ी-बुटियों को भी नर्सरी में उगाया जाता है।
औषधीय पौधों से आय का सृजन
जाइका वाणिकी परियोजना के तहत विशेष रूप से औषधीय पौधों के निरंतर विकास को विनियमित किया जा रहा है। राज्य के युवाओं को स्थाई आजीविका और आय सृजन के अवसर प्रदान करने के लिए महत्वाकांक्षी योजना हैं। परियोजना के तहत विभिन्न सेल्फ हेल्प ग्रुप में क्लस्टर स्तर पर हिम जड़ी-बूटियां जिनका चिकित्सा महत्व है, से संबंधित करीब 643 प्रजातियां हैं। इनमें से व्यावसायिक महत्व की कुछ प्राथमिकता वाली प्रजातियों का चयन करके वन एवं निजी भूमि पर उनकी खेती की जा रही है। जिनमें मुख्यतः सतावरी, एलोवेरा, तेज पत्ता, कडू, चरैता इत्यादी हैं।
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