शिमला, 19 नवम्बर।
Divine Theatre द्वारा बनाई गई फ़िल्म soul for Sole 10 नवम्बर को YouTube के सबसे बड़े शॉर्ट फिल्म के प्लेटफार्म Pocket film’s पर रिलीज हो चुकी है ।
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प्रिंस अली सिद्दीकी इस फिल्म के मुख्य अभिनेता हैं और अगर आज ये फिल्म मुक्कमल बन पाई है प्री प्रोडक्शन से लेकर पोस्ट प्रोडक्शन तक तो ये सब इनकी और इनके पूरे टीम की दिन रात की मेहनत है।
इस फिल्म के मुख्य लेखक है रहमान और एस फिल्म का बहुत प्यारा और उम्दा निर्देशन संजय बनारसी ने किया है। संगीत संयोजन राज भूमि और गायन रूपेश कुमार का है।
फिल्म की एडिटिंग जो की बहुत जिम्मेदारी भरा काम था उसे बखूबी निभाया है सरूश शेख ने। इस फिल्म के DOP अहमद रज़ा थे जिन्होंने बहुत खूबसूरती के साथ इस फिल्म को अपने कैमरे में कैद किया है। सहयोगी कलाकार के रूप में धर्मेंद्र थे।
इस फिल्म में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रिया कुमारी की है। जो एक खास बच्ची हैं। इस फिल्म में उन्हें देखना आपके आंखों की नमी का कारण बनेगी।
इस फिल्म और इससे जुड़े लोगों में एक बेहद ख़ास समानता है। ये सभी रचनात्मक सिनेमा प्रेमी हैं। और अपने हिस्से की बेहतर कहानियां कहने के लिए आतुर हैं। शायद! इसलिए ही सीमित संसाधन होने के बावजूद ये फिल्म बनकर तैयार हो पाई।
और अब जल्द ही इसे पॉकेट फिल्म्स के ऑफिशियल यूट्यूब चैनल पर रिलीज किया जाएगा। प्रिंस मुंबई से लौटकर अपने गांव रामगढ़ आते हैं। यात्रा के दौरान एक कहानी उनके भीतर उतरती है।
वो ट्रेन से उतरने के तत्पश्चात अपने करीबी और निर्देशक संजय बनारसी से मिलते हैं। अपने भीतर हो रहे हलचल से उन्हें अवगत कराते हैं। इन्हें उनका पूरा सानिध्य मिलता है। कहानी तो है लेकिन इसमें शब्द भरने के लिए एक कलमकार की भी आवश्यकता होगी।
तो इस तरह शामिल किए जाते हैं प्रिंस निरंतर अलग अलग लोगों से बात कर उन्हें इस फिल्म से जोड़ते हैं। अहमद रज़ा, ध्रमेंद, राज भूमि, रूपेश आदि एक एक कर निस्वार्थ भाव से जुड़ते चले जाते हैं।
एक बात जो सबसे अहम है। वो है इस फिल्म की मुख्य भूमिका निभाने वाली रिया। रिया गरीब घर से आती हैं। जन्म से ही चलने फिरने में कठिनाई होने के कारण घर पर ही रहती हैं। हमें इस फिल्म के लिए रिया जैसी ही एक बच्ची की तलाश थी।
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मुश्किल काम था। लेकिन प्रिंस ने रिया के मां बाबा को समझाया कि आपकी बच्ची को हम नेक काम के लिए अपने साथ ले जा रहें हैं। आपको चिन्तित होने की कोई आवश्यकता नहीं है। कुछ काम सुविधाओं से होती है और कुछ काम दुआओं से होती है।
जो काम दुआओं से होती है। उनमें कठिनाइयां चाहें जितनी आए। वो काम अपने अंत तक ज़रूर पहुंचता है। इतने सारे लोगों के जुड़ जाने के बाद भी काम पूरा नहीं हुआ था। हमें एक घर चाहिए था। जो रामगढ़ के लोगों की प्यार के बदौलत हमें मिला।
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